भागवत पुराण – Bhagwat mahapuran || श्रीमद्भागवत महापुराण कथा
Sabhi mitro ko humara naman. Aaj hum apke liye laye hai भागवत पुराण – Bhagwat mahapuran || श्रीमद्भागवत महापुराण कथा iss article se apko jankari milegi ki bhagwat puran kya hai… HINDIFORU.IN
भागवत पुराण परिचय
अष्टादश पुराणों में भागवत नितांत महत्वपूर्ण तथा प्रख्यात पुराण है। पुराणों की गणना में भागवत अष्टम पुराण के रूप में परिगृहीत किया जाता है (भागवत 12.7.23)। आजकल ‘भागवत’ आख्या धारण करनेवाले दो पुराण उपलब्ध होते हैं :
(क) देवीभागवत तथा
(ख) श्रीमद्भागवत्
अत: इन दोनों में पुराण कोटि मे किसकी गणना अपेक्षित है ? इस प्रश्न का समाधान आवश्यक है।
विविध प्रकार से समीक्षा करने पर अंतत: यही प्रतीत होता है कि श्रीमद्भागवत को ही पुराण मानना चाहिए तथा देवीभागवत को उपपुराण की कोटि में रखना उचित है। श्रीमद्भागवत देवीभागवत के स्वरूपनिर्देश के विषय में मौन है। परंतु देवीभागवत ‘भागवत’ की गणना उपपुराणों के अंतर्गत करता है (1.3.16) तथा अपने आपको पुराणों के अंतर्गत। देवीभागपंचम स्कंध में वर्णित भुवनकोश श्रीमद्भागवत के पंचम स्कंध में प्रस्तुत इस विषय का अक्षरश: अनुकरण करता है।
Agni puran
Agni puran in hindi-सम्पूर्ण अग्निपुराण || Agni purana

श्रीभागवत में भारतवर्ष की महिमा के प्रतिपादक आठो श्लोक (5.9.21-28) देवी भागवत में अक्षराश: उसी क्रम में उद्धृत हैं (8.11.22-29)। दोनों के वर्णनों में अंतर इतना ही है कि श्रीमद्भागवत जहाँ वैज्ञानिक विषय के विवरण के निमित्त गद्य का नैसर्गिक माध्यम पकड़ता है, वहाँ विशिष्टता के प्रदर्शनार्थ देवीभागवत पद्य के कृत्रिम माध्यम का प्रयोग करता है।
श्रीमद्भागवत भक्तिरस तथा अध्यात्मज्ञान का समन्वय उपस्थित करता है। भागवत निगमकल्पतरु का स्वयंफल माना जाता है जिसे नैष्ठिक ब्रह्मचारी तथा ब्रह्मज्ञानी महर्षि शुक ने अपनी मधुर वाणी से संयुक्त कर अमृतमय बना डाला है।
भागवत में 18 हजार श्लोक, 335 अध्याय तथा 12 स्कंध हैं। इसके विभिन्न स्कंधों में विष्णु के लीलावतारों का वर्णन बड़ी सुकुमार भाषा में किया गया है। परंतु भगवान् कृष्ण की ललित लीलाओं का विशद विवरण प्रस्तुत करनेवाला दशम स्कंध भागवत का हृदय है। Bhagwat Mahapuran
अन्य पुराणों में, जैसे विष्णुपुराण (पंचम अंश), ब्रह्मवैवर्तं (कृष्णजन्म खंड) आदि में भी कृष्ण का चरित् निबद्ध है, परंतु दशम स्कंध में लीलापुरुषोत्तम का चरित् जितनी मधुर भाषा, कोमल पदविन्यास तथा भक्तिरस से आप्लुत होकर वर्णित है वह अद्वितीय है। रासपंचाध्यायी (10.29-33) अध्यात्म तथा साहित्य उभय दृष्टियों से काव्यजगत् में एक अनूठी वस्तु है। वेणुगीत (10.21), गोपीगीत, (10.30), युगलगीत (10.35), भम्ररगीत (10.47) ने भागवत को काव्य के उदात्त स्तर पर पहुँचा दिया है।
भागवत महापुराण
इस कलिकाल में ‘श्रीमद्भागवत पुराण’ हिन्दू समाज का सर्वाधिक आदरणीय पुराण है। यह वैष्णव सम्प्रदाय का प्रमुख ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ में वेदों, उपनिषदों तथा दर्शन शास्त्र के गूढ़ एवं रहस्यमय विषयों को अत्यन्त सरलता के साथ निरूपित किया गया है। इसे भारतीय धर्म और संस्कृति का विश्वकोश कहना अधिक समीचीन होगा। सैकड़ों वर्षों से यह पुराण हिन्दू समाज की धार्मिक, सामाजिक और लौकिक मर्यादाओं की स्थापना में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता आ रहा हैं।
इस पुराण में सकाम कर्म, निष्काम कर्म, ज्ञान साधना, सिद्धि साधना, भक्ति, अनुग्रह, मर्यादा, द्वैत-अद्वैत, द्वैताद्वैत, निर्गुण-सगुण तथा व्यक्त-अव्यक्त रहस्यों का समन्वय उपलब्ध होता है। ‘श्रीमद्भागवत पुराण’ वर्णन की विशदता और उदात्त काव्य-रमणीयता से ओतप्रोत है। यह विद्या का अक्षय भण्डार है। यह पुराण सभी प्रकार के कल्याण देने वाला तथा त्रय ताप-आधिभौतिक, आधिदैविक और आध्यात्मिक आदि का शमन करता है। ज्ञान, भक्ति और वैरागय का यह महान ग्रन्थ है।
Shiv Mahapuran
Shiv puran in hindi-सम्पूर्ण शिव महापुराण हिंदी में

इस पुराण में बारह स्कन्ध हैं, जिनमें विष्णु के अवतारों का ही वर्णन है। नैमिषारण्य में शौनकादि ऋषियों की प्रार्थना पर लोमहर्षण के पुत्र उग्रश्रवा सूत जी ने इस पुराण के माध्यम से श्रीकृष्ण के चौबीस अवतारों की कथा कही है।
इस पुराण में वर्णाश्रम-धर्म-व्यवस्था को पूरी मान्यता दी गई है तथा स्त्री, शूद्र और पतित व्यक्ति को वेद सुनने के अधिकार से वंचित किया गया है। ब्राह्मणों को अधिक महत्त्व दिया गया है। वैदिक काल में स्त्रियों और शूद्रों को वेद सुनने से इसलिए वंचित किया गया था कि उनके पास उन मन्त्रों को श्रवण करके अपनी स्मृति में सुरक्षित रखने का न तो समय था और न ही उनका बौद्धिक विकास इतना तीक्ष्ण था। किन्तु बाद में वैदिक ऋषियों की इस भावना को समझे बिना ब्राह्मणों ने इसे रूढ़ बना दिया और एक प्रकार से वर्गभेद को जन्म दे डाला।
‘श्रीमद्भागवत पुराण’ में बार-बार श्रीकृष्ण के ईश्वरीय और अलौकिक रूप का ही वर्णन किया गया है। पुराणों के लक्षणों में प्राय: पाँच विषयों का उल्लेख किया गया है, किन्तु इसमें दस विषयों-सर्ग-विसर्ग, स्थान, पोषण, ऊति, मन्वन्तर, ईशानुकथा, निरोध, मुक्ति और आश्रय का वर्णन प्राप्त होता है (दूसरे अध्याय में इन दस लक्षणों का विवेचन किया जा चुका है)। यहाँ श्रीकृष्ण के गुणों का बखान करते हुए कहा गया है कि उनके भक्तों की शरण लेने से किरात् हूण, आन्ध्र, पुलिन्द, पुल्कस, आभीर, कंक, यवन और खस आदि तत्कालीन जातियाँ भी पवित्र हो जाती हैं।
Ved
Ved in hindi – वेद क्या है || जानिए Ved kitne prakar ke hote hain
ऋग्वेद क्या है- Ved prakar Rigveda || ऋग्वेद हिंदी में
Samveda in hindi || सामवेद – सामवेद मंत्र, संहिता, पाठ
अथर्ववेद – अथर्ववेद संहिता, मंत्र, श्लोक ,सार || Atharvaved in hindi
Yajurved in hindi-संपूर्णा यजुर्वेद हिंदी में || Yajurved hindi